Wednesday, August 17, 2011

गन तले गणतंत्र

आज हमारे देश को आजाद हुए ६४ वर्ष बीत चुके हैभारत एक स्वतंत्र ,संप्रभु,लोकतान्त्रिक गणतंत्र हैलेकिन हमारी स्वतंत्रता को ग्रहण लग गया हैभारत आज आतंरिक अवं बाहरी आतंकवाद के चपेट में चूका हैएक महामारी की तरह यह समस्या फैलती जा रही हैनक्सलवाद की समस्या विकृत स्वरुप ले रही हैउत्तर बिहार से लेकर आंध्र प्रदेश और उससे सटे महाराष्ट्र की सीमावर्ती इलाके "लाल पट्टी" के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैछत्तीसगढ़,पश्चिम बंगाल के दक्षिणी हिस्से और झारखण्ड इस "लाल आतंक" के साये में जीने को मजबूर हैआतंकवाद का एक दूसरा चेहरा भी है- बढती क्राय्म रेट। इससे शायद ही भारत का कोई राज्य अछुता हैलोकल गुंडों से लेकर अंडरवर्ल्ड के कारस्तानियो से हम भारतीय त्रस्त हैंये तो ट्रेलर मात्र है- सीमा पर से संचालित आतंकवाद तो हमारे शांति को भंग करने का प्रयास करता ही रहता हैऐसे में जबान से अनायास ही फुट पड़ता है-"गन तले है गणतंत्र"-बन्दुक और बारूद के साये में जीने को हम मजबूर है
ये आजकल मीडिया और राजनीतिज्ञों के लिए एक रेडीमेड गरम- मसाले की तरह काम कर रहा है , जरा सी डाल दी -जयका ही बदल गयाजब मुद्दों का कल पड़ जाये ,इस समस्या को तडके में लगा के मौके पैर छक्का लगा दिया जाता हैभोली-भली जनता मीडिया अवं राजनीतिज्ञों के शाब्दिक मायाजाल में फंस जाती हैयही चुक हो जाती हैजनता भिखरे मानस के साथ ,अलग सोच,परिवेश एवं ज्ञान के कारण एकजुट हो नहीं पाती और लोकतंत्र का वाहक "लोकमत" जन्म लेने से पहले ही दम तोड़ देता हैयही भारत की "अखंडता में एकता" की परिकल्पना धुल चाटने को मजबूर हो जाती है। "गन" के डर से "जन-मन-गन" आक्रांत हैदो शब्दों में बयां करे तो -"कभी इसके निराकरण के बारे में ढंग से सोचा ही नहीं गया,हमेशा इस पैर काबू पाने की बात दोहरे गयी है"। मामला साफ़ है सभी शार्ट -टर्म सक्सेस के चक्कर में है,कोई इसके मूलभूत नाश के बारे में सोचता ही नहीं
अगर बारीकी से देखा जाये तो,ये आतंकवाद बदली या बहकी सोंच ,गरीबी और बेरोज़गारी का ही प्रतिफल हैदेह्सेत्गार्ड इसी का गलत फायदा उठाकर अपने संख्या बल में लगातार वृद्धि कर रहे है,जो हमारे लिए चिंता का कारण बना हुआ हैभोले जन मानस को संप्रदायी या गलत सामाजिक अवधारनाओ का पाठ पढ़ाकर इन्हें आत्मघाती बना रहे हैबात अगर इनसे ना बनी तो पैसो का लालच देकर इन्हें अपने कुनबे में शामिल कर ले रहे हैसाक्ष्य प्रमाणित करते है की, बच्चे और महिलाएं भी अब इन आतंकी दस्तों से अछूते नहीं बचेयह बीमारी एक महामारी का शक्ल लेते जा रही हैसब कुछ जानते हुए भी सरकार अब तक इसका निराकरण क्यों नहीं दूंढ पाई है ये विचारनीय प्रश्न हैव्यंग्यवश लगता है उनकी मंशा यही है की बेरोज़गारी,गरीबी और आतंकवाद जैसी समस्या ख़त्म हो जाये तो राजनीती के लिए मुद्दा ही नहीं बचेगाइसलिए हर बार नयी चासनी में डुबो इसको पेश करने की फ़िराक में ये लोग लगे रहते है. अब ऐसे में तो आम जनता का उपरवाला है मालिक है जाने कब किस की जान खतरे में जाये। "गन तले गणतंत्र" की यही लाईफस्टाइल है -लेट्स एन्जॉय!
इस गंभीर लेख के द्वारा मै जनमानस को सच्चाई का आइना दिखाने का प्रयास कियामेरे इस "सार्थक प्रयत्न" के आवाज़ को बुलंद करने में सहयोग करेधन्यवाद!

3 comments:

  1. because Government has created this situation........and they use these people to gain political mileage before elections......this is true democracy.....we are just pawns in the hands of some politically corrupt people......

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  2. moke ki talash me lage neta khud hi jante hain ki hum kitne galat hain lekin sabse badi samasya hai .........sabko ye lagta hai me nahi karunga to koi aur karega ye soch ke santh hi neta log apni party ke liye fund ikkattha karne ke naam pe khud bhi kitne upar pahunch jate hain........sab jante hain.....achche bure ki pehchan kese ho........jise bhi achcha samajh ke vote diya wo hi bura ban gaya .....is liye ab janta sochti hai kyon kisi imandar insan ko beiman banao jo pehle se beiman hai use hi vote de dete hain.......

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  3. apne samasya ko kafi rochak andaz me rakha............hume hi iska nirakarn dundhna hoga....prayas jaari rakhe safalta jarur milegi

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