आज कई दिनों के बाद
लिखने बैठा हूँ.मौसम ने करवट ली है,सर्दी धीरे धीरे जाने की तैयारी में हैं,वही
मौसम में गर्माहट दस्तक दे रही है.थोडा आलसपन सा छाया है.सोचा,चलो कुछ लिख लेते
हैं थोड़े फुर्सत में.जैसे मौसम बदलाव के संकेत दे रहा है,ठीक वैसे संकेत हमारे
सामाजिक परिवेश में भी दिखने लगे हैं.सामाजिक परिवर्तन के इस दौर में इन्टरनेट के
सकारात्मक योगदान को नाकारा नही जा सकता.फेसबुक,ट्विटर जैसे कमाल के प्लेटफार्म आज
वैश्विक समाज को एक सूत्र में पिरोने का काम कर रहे हैं.पूरी दुनिया सिमट के एक “ग्लोबल
विलेज” (वैश्विक गाँव) बन गयी है.ये तो इसका सकारात्मक पक्ष है.लेकिन सामाजिक
प्रदुषण से ये भी अब अछूता नहीं रह गया.सांस्कृतिक प्रदुषण से लेकर उग्र मार्केटिंग
सभी तरह के हथकंडे से अब ये अछूता नही रहा.डिजिटल मार्केटिंग तकनीक के जारी उपयोग को अपने ज्ञान के धरातल में आंकने का एक छोटा सा
प्रयास कर रहा हूँ.
प्रबंधन शास्त्र “मार्केटिंग”
का बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान है.डिजिटल युग में “डिजिटल मार्केटिंग” तकनीक भी अपने
पाँव पसारने लगा है.इस तकनीक का व्यापक परायों आज कल सोशल साइट्स पर हो रहा है.इन्हें
दो वर्गों में बांटा जा सकता है.पहला प्रत्यक्ष दूसरा परोक्ष.जैसे हर सिक्के के दो
पहलू होते हैं,यहाँ भी सकारामक पक्ष और नकारात्मक पक्ष दोनों हैं.सकारत्मक पहलू ये
है कि इन साईट्स पर बढ़ते यूजर्स की संख्या हमें एक व्यापक जनमानस को एक छोटे से
प्रयास से जुड़ने का साधन देती है.आजकल कई तरह की ओनलाईन सर्वे ,हमें ये डाटा देती
हैं की यूजर्स की पसंद नापसंद क्या है? ऐसे में अपने उत्पाद/सेवा के अनुसार उन सब
तक पहुंचा जा साकता है.ये विज्ञापन का एक सशक्त माध्यम बन कर उभरा है.
अब थोडा इसके दुसरे
पक्ष को भी देख लें.एक कहावत आजकल बहूत प्रचलित है,जिसके जितने फोलोवेर्स सोशल
साईट्स पर हैं,वो उतना ज्यादा लोकप्रिय है.जिस व्यापार साईट को ज्यादा हिट्स मिलते
हैं उसकी पहुँच जनमानस में ज्यादा समझी जाती है.इसे प्रभावी बनाने के लिए कई
नकारात्मक हथकंडो का भी इस्तेमाल आजकल आम बात हो गयी है.जैसे की कई ऐसी कम्पनियां
हैं,जो फेक(जाली) यूजर्स की संख्या जोड़ कर एक अमुक व्यक्ति को लोकप्रिय बनाने में
लग जाती हैं.अथवा,इन्टरनेट में व्यापर उत्पाद सम्बन्धी साईट्स में जाली हिट्स
संख्या बढाकर उसे गूगल सर्च इंडेक्स के ऊँचे पायदान पर पहुंचाने की कवायद करती है.सरल
शब्दों में अगर इसे समझे,जब “कीवर्ड्स” हम गूगल के सर्च में डालते हैं तब वह
परिणामस्वरूप हमें सबसे लोकप्रिय साईट्स को लोकप्रियता के अनुसार क्रमवार में हमें
दिखाता है,इन्ही “कीवर्ड्स” की लोकप्रियता को मैनेज किया जाता है.इस तरीके का
प्रयास राजनितिक मार्केटिंग एवं व्यापर/उत्पाद/सेवा को लोकप्रिय बनाने में काफी हो
रहा है.
“नकारात्मक डिजिटल
मार्केटिंग “ का एक वीभत्स स्वरुप भी है.जिसे हम “उग्र मार्केटिंग” के श्रेणी में
डाल सकते हैं.आजकल सोशल साईट्स पर “मीम”,“वायरल वीडियो”,”वायरल खबर” जैसे शब्द
काफी लोकप्रिय हो चुके हैं.इन्हें धर्म,संप्रदाय,जाती,सामाजिक-द्वंद्ध की चासनी
में डालकर खूब बनाया जा रहे है.और इन्हें फेसबुक-व्हात्सप्प जैसे इन्टरनेट की गंगा
में बेख़ौफ़ बहाया जा रहा है.ये निजी स्वार्थ अथवा फायदे के लिए बनाया जा रहा है और
भोली-भाली जनता इससे गुमराह भी हो रही है.
हमें अपने समझ से
इन्हें समझने की आवश्यकता है.इसके मर्म को हम तभी पहचान सकते हैं जब हम इन्टरनेट
और इन सोशल साईट्स का उपयोग काफी समझदारी से अनुशाषित होकर करें.और भले और बुरे
में अंतर करना सीखे लें.ताकि,डिजिटल मार्केटिंग का सकारात्मक प्रयोग हमेशा चलता
रहे और नकारात्मक प्रयोग पर अंकुष लगे.
आने वाले समय में “मेरी
दृष्टि “ सीरिज के तहत आपको अपने विचारों से अवगत कराता रहूँगा.मेरे राय निजी हैं
और मेरे सीमित ज्ञान पर आधारित हैं.