Sunday, August 11, 2013

नेता जी कहिन!

जाने कितने दिनों के बाद आज फिर अपने गली का सितारा पप्पू दिखा. गुम हो गया था पिछले कई दिनों से,पर ख़ुशी की बात है आज लौट आया .पूरा सीरियस मूड में है.पता चला सीधे बम्बई से लौटा है ,गए थे हीरो बनने! मामले की नजाकत को समझते हुए मेरे अन्दर के खोजी पत्रकार ने कहा चलो मामला एक्सपोज करते हैं.थोडा यही बयार में अपनी काबिलियत का भी झंडा बुलंद कर ले.यही प्लानिंग करते करते चाय की  कड़क घूँट अन्दर किया .नजर उठाई बारह बज चुके थे.पांव में जूते डाले और दौड़ा दी अपनी फटफटिया पप्पुआ के घर की ओर . आयं!ये क्या पूरा गहमा गहमी मची है पप्पुआ के घर में . जैसे ही घर के दरवाजे पर पहुंचा देखा पप्पुआ के बाबूजी मिठाई बाँट रहे है .इ का हुआ ,लगता है पप्पुआ स्टार हो गया क्या ? दिल अन्दर से घबराने लगा ,लगा खोजी पत्रकार की मेरी न्यूज़ सेंस बूट लाने चली गयी है.बिना जानकारी के ही अपना कैमरा चमकाने आ गया .पप्पुआ के बाबूजी नए खादी का कुरता और धोती झाडे हुए कहे आओ आओ पत्रकार बब्बुआ आओ ,तुम भी मिठाई चखते जाओ पता नहीं सुबह से मीठे का दर्शन हुआ हो या नहीं.मैं अवाक् खड़ा रह गया . अन्दर के पत्रकार  ने कहा मलाई पप्पुआ ने काटी   , चमक बाबूजी रहे है ,आखिर क्या बात है.-दुबे जी बजनिया और चौबे जी नचनियां.हलकी सी हंसी मेरे चेहरे पर घूम गयी,मैं  अपने ख्यालों में खोया था की अचानक एक बर्फी का टुकड़ा मेरे होठों को दबाते हुए आगे बढ़ा और मेरी तन्द्रा भंग हो गयी.पप्पुआ के बाबूजी,अपनी बतीसी बाहर किये कह रहे थे लो बचवा ! हमारा पप्पुआ नेता बन गया . मैं हक्का-बक्का  रह गया,गया था हीरो बनने ये नेता कैसे बन गया.हकलाते हुए मैंने पूछा- चाचा अचानक नेता कैसे बन गया .वो बोले ये तो पप्पुए से पूछ लेना,जरुरे कोई चौका छक्का मारा होगा .पप्पुआ की काबिलियत पर अब हमको भी गर्व होता जा रहा था , कसबे का बेटा नेता बन के राजनितिक पटल पर बवाल जो करने वाला था .मैंने भी मन ही मन सोचा अगर पप्पुआ अपनी राजनीती चमका के कही एम.पी/ एम.एल.ए बन गया तो अपनी ही चाँदी है दोस्त की खबर छापने का पहले मौका भी तो मुझे ही मिलेगा.चलो इसी बहती गंगा में हाथ धो कर हम भी स्थापित पत्रकार तो बन जाये , एक स्ट्रिंगर की चाकरी में इंची टेप से नाप के खबर की लम्बाई नापकर मुआवजा लेते लेते  थक गया हूँ .पप्पुआ के चक्कर में रोज़ बाई-लाइन खबर तो मिल ही जाएगी.खोजी पत्रकार को खबर खोजना नहीं पड़ेगा,फोन पर बुलावे के साथ खबर मिलेगी .साथ में एक वक्त में खाने का इन्तेजाम हो जायेगा जी-हजूरी करके नेताजी का.मैं अपने दिवास्वप्न में मगन था .तभी कानो में पप्पुआ की आवाज़ कानो में टकराई क्या बे ,क्या सोच रहा है.सामने देखा तो खद्दर के कुरते पजामे में पप्पुआ पहचान में ही नहीं आ रहा था.जीन्स पहनने वाले गली के छोरे को खद्दर में देखना पच नहीं रहा था.मैंने बोला यार ,तू तो एक दम बदल गया.अचानक कौन सा तीर मारा की हीरो बनते बनते नेता बन गए . वो बोला छोड़ ये लम्बी कहानी है. मैंने आदतन उससे सच्चाई उगलवाने के लिए जी तोड़ मेहनत करने लगा.नेता जो है ,बड़ा ही डिप्लोमेटिक उत्तर दिया –“तुम पत्रकार और हम नेता दोनों मजबूरिये में बनते है ,कही कौनो सहारा न मिले तो पत्रकार बन जाओ या फिर दो सेट खादी का सिला के नेता बन जाओ ,कौनो कम्पीटीशन थोड़े पास करना है .मजाक में ही उसने सारा दर्द एक लाइन में उड़ेल दिया .
सच्चाई ही है आज  कोई माँ-बाप ये नहीं चाहता उसका बेटा राजनीति में कदम रखे ,न ही युवा चाहता है. शेष आप खुद ही समझ सकते हैं.कमोबेश यही स्थिति पत्रकारिता को ले कर होती जा रही है , इस क्षेत्र में नैतिकता की गिरावट और कम  वेतन-भत्ते की लाचारगी ,बिना बोले हर कुछ बयां कर देती है.८०% से ज्यादा पत्रकार स्ट्रिंगर के रूप में सेवाएँ दे रहे है ,जिन्हें न कोई वेतन मिलता है न सुविधाएँ ,मिलती है तो खबर की लम्बाई नापकर चंद रुपये .पप्पुआ सही ही कह गया –ये बेचारगी में डूबते को तिनके का सहारा है !