Sunday, January 1, 2012

नवजात कोपलें

नए साल के आगमन पर एक नयी सुबह ने दस्तक दी रोज़ की तरह अख़बार के पन्नो पर नज़र दौडाई, वर्ष २०१२ के पदार्पण से जुडी असंख्य खबरे मिली ये अखबारी फलसफा पिछले २०-२५ साल से निरंतर मेरे नज़रों के सामने से गुजरता रहा है पिछले साल के मुल्यांकन,संस्मरण,यात्रा-वृतांत, ज्योतिषीय गणनाओ और हार्दिक शुभकामनाये रूपी विज्ञापनों से सारा अख़बार पटा रहता है इन्ही मानसिक विश्लेषण में उलझा हुआ मै अपने घर के बागान में पहुंचा सहसा मेरी नज़र एक ठूंठे पौधे पर उग आयी नयी कोपलों पर ठहर गयी उस सूखे पौधे पर दो नए हरे कोपल ज़िन्दगी की नयी आशा ले कर आई थी नए साल के आगमन पर इस प्रतीकात्मक नव-सृजन और नवचेतन की परिकल्पना मेरे दार्शनिक मन में हिलोरे मारने लगी. जैसे इस पौधे के लिए ये नवजात कोपलें नए जीवन के सम्भानाओ को लेकर आई है,वैसे ही नया साल का पहला दिन जो नवजात है हमारे वैश्विक विकास और व्यक्तिक विकास की असीम सम्भावनाये लेकर आया है कुछ बाधाएँ है,कुछ सम्भावनाये है पर इन सबसे ऊपर हमारी दृढ इच्छा -शक्ति है जो बाधाओं को लाँघ कर असीम सम्भानाओ को सच्चाई के धरातल में पहुंचा सकता है,यानि उसके साकार स्वरुप का दीदार करवा सकता है
जैसे हर एक सुबह नयी आशा के किरण के साथ शुरू होती है,वैसे ही आज हम नए साल में उम्मीदों के लम्बे लिस्ट के साथ अपना पहला कदम रख चुके है।अपने निजी और व्यावसायिक दायित्वों के निर्वहन और कुछ नया करने की चाहत मन में तरंगो की तरह अपनी आभा भिखेर रही है। मन इसी भंवर-जाल में फंसा है। अब प्रश्न उठता है, सबकी योजना,सोच और जरुरत अलग-अलग है और क्या बाज़ार में बिकने वाले लेख और किताबें समस्त जन मानस के मानसिक उद्गारों का चित्रण कर सकती है। बुक-स्टाल पर असंख्यों प्रेरक किताबें बिखरी पड़ी है, पर सब के लिए कोई एक फ़ॉर्मूला किसी के पास नहीं है। अगर मेरी माने तो इन सब का फ़ॉर्मूला हर किसी इन्सान के मष्तिस्क में कोडेड रहता है , मामला अटक जाता है इसके इनकोडिंग करने के कारण। संचार सिधान्तो की अगर माने तो इनकोडिंग की प्रक्रिया हर मनुष्य के ज्ञान,कुशलता,जानकारी एवं सामाजिक और आर्थिक परिवेश के मानदंडो पर आधारित होती है। अगर हम अपने इर्द-गिर्द के समाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक छन्ने से छानने का प्रयास करे तो हमारा मस्तिक में फिट फ़ॉर्मूला इनकोड हो सकता है। भूल हो जाती है की हम इसे जानने की इच्छा ही नहीं करते। हमारी इच्छा - शक्ति मर चुकी है,जरुरत है इसे जगाने की। तभी हम मानस पटल पर उग आये नयी कोपलों और सोंच को अमली जमा पहनाने में शायद कामयाब हो सकते है। वर्ष बदला,सोच बदली अब उस सोच को धरती पर उतारने की कवायद करनी है। सबकी उन्नति की प्रार्थना और नव वर्ष आगमन की हार्दिक बधाइयों के साथ अपने अभिव्यक्ति को विराम देता हूँ।
आशा करता हूँ मेरा" ये सार्थक प्रयत्न "आपके इच्छा -शक्ति को जगाने में कुछ मददगार सिद्ध हुआ हो