Wednesday, June 28, 2017

छोटू-व्यथा

ये जो "छोटू" होते हैं न ?
जो चाय दुकानो या होटलों
वगैरह में काम करते हैं -
वास्तव में ये अपने घर के
"बड़े" होते हैं ---
कल मैं एक ढाबे  पर डिनर करने गया
वहा एक छोटा सा लडका था. जो ग्राहको
को खाना खिला रहा था कोई "ऎ छोटू"
कह कर बुलाता तो कोई "ओए छोटू"
वो नन्ही सी जान ग्राहकों के बीच जैसे
  उलझकर रह गयी हो.
यह सब मन को काट खाए जा  रहा था. मैने छोटू
को "छोटू जी" कहकर अपनी तरफ बुलाया
वह भी प्यारी सी मुस्कान लिये मेरे पास
आकर बोला-" साहब जी क्या खाओगे".
मैने कहा साहब नही भैया जी बोल
तब ही बताऊगाँ. वो भी मुस्कुराया और
आदर के साथ बोला भैया जी आप
क्या खाओगे ?
मैने खाना आर्डर किया और खाने लगा
छोटू जी के लिये अब मै ग्राहक से जैसे
मेहमान बन चुका था वो मेरी एक आवाज
पर दौडा चला आता और प्यार से पूछता
  भैया जी और क्या लाये.
खाना अच्छा तो लगा ना आपको???
और मै कहता हाँ छोटू जी आपके इस
प्यार ने खाना और स्वादिष्ट कर दिया.
खाना खाने के बाद मैने बिल चुकाया
और 100 रू छोटूजी की हाथ पर रख
कहा- "ये तुम्हारे है रख लो और मालिक से
मत कहना" . वो खुश होकर बोला जी
भईया!
फिर मैने पुछा क्या करोगो ये पैसो का
वो खुशी से बोला आज माँ के लिये
चप्पल ले जाऊगाँ 4 दिन से माँ के पास
चप्पल नही है. नंगे पैर ही चली जाती
है साहब लोग के यहाँ बर्तन माझने..
उसकी ये बात सुन मेरी आँखे भर आयी
मैने पुछा घर पर कौन कौन है,
तो बोला माँ है ,मै और छोटी बहन है
पापा भगवान के पास चले गये.
मेरे पास कहने को अब कुछ नही रह
गया था मैने उसको कुछ पैसे और दिये
और बोला आज आम ले जाना माँ के
लिये और माँ के लिये अच्छी सी चप्पल
लाकर देना और बहन और अपने लिये
आईसक्रिम ले जाना .
और अगर माँ पुछे किसने दिया तो कह
देना पापा ने एक भैया को भेजा था वो
दे गये.
इतना सुन छोटू मुझसे लिपट गया और
मैने भी उसको अपने सीने से लगा लिया.
वास्तव में छोटू अपने घर का बड़ा निकला.
पढाई की उम्र मे घर का बोझ उठा रहा है.
  ऐसे ही ना जाने कितने ही छोटू आपको
होटल, ढाबो या चाय की दुकान पर काम
करते मिल जायेंगे.
आप सभी से इतना निवेदन है उनको
नौकर की तरह ना बुलाये थोडा प्यार से
  पुकारें.आप का काम जल्दी से कर देगें.
आप होटलो मे भी तो टिप देते हो तो
प्लीज ऎसे छोटू जी की थोडी बहुत
मदद जरूर करे.
करके देखिये अच्छा लगेगा.