Friday, August 26, 2011

मै भी अन्ना !

अन्ना हजारे दुसरे गाँधी के रूप में उभरे हैं ,सारे भारत को एक कड़ी में जोड़ दियासरकार भी झुकती दिख रही हैसच्चाई की जीत निश्चित हैलोकपाल विधेयक शायद भारत को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिला ही देइस आन्दोलन का टैग लाइन है -"मै भी अन्ना"',सारा देश "अन्नामय" हो गया है अन्ना भी फैशन ट्रेंड हो गए, पहली बार एक सत्यव्रत और सादगी से भरे व्यक्तित्व को सबने अपना रोल मॉडल और फैशन- आइकॉन बनायातो हमारा पप्पुआ कैसे पीछे हटता , वो भी बोला- "मै हु अन्ना"।
पर पप्पू टेंशन में गया ,आखिर कैसे बने वो अन्नाफ़ौरन अपनी मित्र मंडली की बैठक बुलाईआज गली के सारे निकम्मे गंभीर चिंतन में व्यस्त हैभाई! आखिर अन्ना कैसे बनेतभी टिंकुआ बीच में टपका- अरे न्यूज़ -चैनल देखे नहीं क्या? उसमे तो अन्ना चौबीस घंटे चौकन्ना है!रामू बोला- टिंकू भैया क्लियर बताओ,काहे कन्फ्यूज करते होपप्पू ने कप्तानी संभाली-अरे भाई लोग! कहानी सिम्पल है हम लोग भी वही करते है जो अन्ना और उनके समर्थक टी.वी पर कर रहे हैसभी ने एक स्वर में कहा-"व्हाट ऍन आईडिया सरजी"।
कोर -कमिटी का गठन हुआऔर विचार- विमर्श का दौर चालू हुआकप्तान पप्पू बोला-कुछ ऐसा करो की लोकल मीडिया में चमक जायेवैसे भी लोकल पब्लिक पूछती नहीं है, शायद हमारी कुछ मार्केट वैल्यु बढ़ जाये यही बहाने-"जय हो अन्ना!"। फ़ाइनल डिसीजन हुआ ,कैंडिल मार्च निकालने कापुरे ग्रुप में चंदा हुआ ,जद्दोजहद के बाद तीन हज़ार रूपये ही गएसारे पैसे गाँधी टोपी,बैनर-पोस्टर ,मोमबत्ती और बाजा-बत्ती के मार्केटिंग में चले गएपप्पू भैया लोकल पत्रकार साहब को भी फोटो उतारने और छापने का निमंत्रण दे आयेअब सब को शाम का इंतज़ार था
सभी बेसब्री से शाम होने का इंतज़ार कर रहे थेटिंकुआ बोला-ये टाइम आगे क्यों नहीं बढ़ रहा है,दिल में बेचैनी हो रही हैरामू हँसते हुए कहता है- "अखबार में छपने की इतनी बेताबी"। पप्पू बोला-"जो भी हो,बाई गौड़ ! कल सब अखबार खरीद कर पुरे मोहल्ले में बाटेंगे ,फिर देखना अन्ना बाबा की कृपा से हम भी हीरो बन जायेंगेदेखते-देखते शाम हो गयीघड़ी में आठ बजते ही निकल पड़ा अन्ना के समर्थन में कैंडल मार्चवन्दे मातरम ,भारत माता की जय, "अन्ना तुम मत घबराना,तेरे पीछे सारे जमाना " सरीखे नारों से आसमान गूंज उठापुरे शहर का चक्कर लगा लियाअब यात्रा विराम पर पहुचने वाली थी, तभी टिंकुआ चिल्लाया -पत्रकार बाबु अभी तक नहीं आयेपूरा प्रोग्राम का कबाड़ा हो जायेगा,जल्दी फोन लगाओ उसको! पप्पू फोन पर पत्रकार को झल्लाते हुए बोला-जल्दी आईये नहीं तो मामला गड़बड़ा जायेगा और दो सौ रुपया फालतू में नहीं दिए आपकोदौड़ते-हाँफते पत्रकार बाबु आये,झट-झट - फोटो उतारेकैंडल मार्च ख़तम हुआ, पुरे टीम के चेहरे पर चवनिया मुस्कान थीअब था इंतज़ार सुबह के अखबार का!
सभी ने करवटे बदलकर रात बितायीअहले सुबह चार बजे उठ के स्टेशन की तरफ भागे अखबार खरीदनेपेज- पर अपनी फोटो देख के सब का छाती चौड़ा हो गयाऐसा लगा जैसे आज आई..एस की परीक्षा पास कर लीएक स्वर से सभी ने हिप -हिप-हुर्रे का नारा लगाया और दौड़ पड़े अपने मोहल्ले में अपनी महिमा मंडन करने के लिएसभी खुश थे,आज पहली बार कोई अच्छा काम जो किया थातभी पप्पू की नज़र एक वृद्ध आदमी पर पड़ी जो रो रहा थाउससे रहा नहीं गया,उसने पूछा- बाबा! आप क्यों रो रहे हो?। वृद्ध ने अन्ना की फोटो अखबार में दिखाते हुए कहा-"बापू लौट आये है", ऐसी ही चमत्कारी शक्ति बापू के बातों में थी जो सारे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरो देती थीआज फिर सारा राष्ट्र भ्रष्टाचार के खिलाफ एक हैये तभी संभव है जब सभी अन्ना बनाने के प्रयास करेपप्पू और उसकी टीम एक टक वृद्ध की बातें सुन रही थीवे भाव विह्ल हो गएकुछ कदम आगे चलकर पप्पू ने अख़बार फेकी और बोला-"यार ! "मै हु अन्ना" का मतलब लोकप्रियता नहीं सबको अन्ना जी की तरह बनाना हैअगर हम खुद बदलेंगे,तो समाज बदलेगाऔर जब समाज बदलेगा तो देश बदलेगाये बात हम क्यों नहीं समझ पाएतभी टिंकुआ बोला-जो भी हो पप्पू भैया सही बोल रहे है,अब हम ओरिजिनल अन्ना बनेंगेंसभी ने अपने जेब से गाँधी टोपी निकाली और सर पर डाल के कहा -"मै हु अन्ना"।
आज का "सार्थक प्रयत्न" अन्ना आन्दोलन के सच को हलके-फुल्के ढंग में रखने का प्रयास थासभी ने इसे गंभीर लेखो के रूप में लिखा तो मैंने सोचा क्यों व्यंग में इन बातों को रखा जायेआलेख में हिंगलिश भाषा का प्रयोग मैंने इसे आम जन -जीवन से जोड़ने के लिए किया है।मेरे प्रयत्न पर अपनी टिपण्णी अवश्य देधन्यवाद!

Wednesday, August 17, 2011

गन तले गणतंत्र

आज हमारे देश को आजाद हुए ६४ वर्ष बीत चुके हैभारत एक स्वतंत्र ,संप्रभु,लोकतान्त्रिक गणतंत्र हैलेकिन हमारी स्वतंत्रता को ग्रहण लग गया हैभारत आज आतंरिक अवं बाहरी आतंकवाद के चपेट में चूका हैएक महामारी की तरह यह समस्या फैलती जा रही हैनक्सलवाद की समस्या विकृत स्वरुप ले रही हैउत्तर बिहार से लेकर आंध्र प्रदेश और उससे सटे महाराष्ट्र की सीमावर्ती इलाके "लाल पट्टी" के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैछत्तीसगढ़,पश्चिम बंगाल के दक्षिणी हिस्से और झारखण्ड इस "लाल आतंक" के साये में जीने को मजबूर हैआतंकवाद का एक दूसरा चेहरा भी है- बढती क्राय्म रेट। इससे शायद ही भारत का कोई राज्य अछुता हैलोकल गुंडों से लेकर अंडरवर्ल्ड के कारस्तानियो से हम भारतीय त्रस्त हैंये तो ट्रेलर मात्र है- सीमा पर से संचालित आतंकवाद तो हमारे शांति को भंग करने का प्रयास करता ही रहता हैऐसे में जबान से अनायास ही फुट पड़ता है-"गन तले है गणतंत्र"-बन्दुक और बारूद के साये में जीने को हम मजबूर है
ये आजकल मीडिया और राजनीतिज्ञों के लिए एक रेडीमेड गरम- मसाले की तरह काम कर रहा है , जरा सी डाल दी -जयका ही बदल गयाजब मुद्दों का कल पड़ जाये ,इस समस्या को तडके में लगा के मौके पैर छक्का लगा दिया जाता हैभोली-भली जनता मीडिया अवं राजनीतिज्ञों के शाब्दिक मायाजाल में फंस जाती हैयही चुक हो जाती हैजनता भिखरे मानस के साथ ,अलग सोच,परिवेश एवं ज्ञान के कारण एकजुट हो नहीं पाती और लोकतंत्र का वाहक "लोकमत" जन्म लेने से पहले ही दम तोड़ देता हैयही भारत की "अखंडता में एकता" की परिकल्पना धुल चाटने को मजबूर हो जाती है। "गन" के डर से "जन-मन-गन" आक्रांत हैदो शब्दों में बयां करे तो -"कभी इसके निराकरण के बारे में ढंग से सोचा ही नहीं गया,हमेशा इस पैर काबू पाने की बात दोहरे गयी है"। मामला साफ़ है सभी शार्ट -टर्म सक्सेस के चक्कर में है,कोई इसके मूलभूत नाश के बारे में सोचता ही नहीं
अगर बारीकी से देखा जाये तो,ये आतंकवाद बदली या बहकी सोंच ,गरीबी और बेरोज़गारी का ही प्रतिफल हैदेह्सेत्गार्ड इसी का गलत फायदा उठाकर अपने संख्या बल में लगातार वृद्धि कर रहे है,जो हमारे लिए चिंता का कारण बना हुआ हैभोले जन मानस को संप्रदायी या गलत सामाजिक अवधारनाओ का पाठ पढ़ाकर इन्हें आत्मघाती बना रहे हैबात अगर इनसे ना बनी तो पैसो का लालच देकर इन्हें अपने कुनबे में शामिल कर ले रहे हैसाक्ष्य प्रमाणित करते है की, बच्चे और महिलाएं भी अब इन आतंकी दस्तों से अछूते नहीं बचेयह बीमारी एक महामारी का शक्ल लेते जा रही हैसब कुछ जानते हुए भी सरकार अब तक इसका निराकरण क्यों नहीं दूंढ पाई है ये विचारनीय प्रश्न हैव्यंग्यवश लगता है उनकी मंशा यही है की बेरोज़गारी,गरीबी और आतंकवाद जैसी समस्या ख़त्म हो जाये तो राजनीती के लिए मुद्दा ही नहीं बचेगाइसलिए हर बार नयी चासनी में डुबो इसको पेश करने की फ़िराक में ये लोग लगे रहते है. अब ऐसे में तो आम जनता का उपरवाला है मालिक है जाने कब किस की जान खतरे में जाये। "गन तले गणतंत्र" की यही लाईफस्टाइल है -लेट्स एन्जॉय!
इस गंभीर लेख के द्वारा मै जनमानस को सच्चाई का आइना दिखाने का प्रयास कियामेरे इस "सार्थक प्रयत्न" के आवाज़ को बुलंद करने में सहयोग करेधन्यवाद!