Saturday, June 11, 2016

विचारों की उत्पत्ति !



आज बहुत दिन बाद कुछ दिल की बातों को लेखनी लिखने के लिए बारम्बार मजबूर कर रही है. ऐसा अक्सर होता है जब मनोभाव के भंवरजाल में हम फंसे हो और अन्तर्वृति विचारों को समेकित करने का भरसक प्रयास करती है. भावनाएं सागर की लहरों की तरह होती है जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से प्रेरित होती है,वैसे ही विचार का प्रस्फुटन होता है. तो सोचा चलो विचार कैसे उत्पन्न होते हैं उसपर थोडा दिमाग लगा लूं.कुछ हलके फुल्के शब्दों में और अपने अंदाज़ में आज लिख डालूं.विज्ञान को बोल चाल की भाषा में पिरोने का प्रयास कर लूं.प्रश्न एक सरल सा है,मनोभाव या विचार कैसे उत्पन्न होतें है और क्या क्या कारक है जो इसे प्रभावित करते है.सतही तौर पर ,हम इसे अपने ज्ञान से जोड़ते हैं.पर क्या केवल ज्ञान ही विचारों के उत्पत्ति में किरदार निभाता है! इसका उत्तर एक आम आदमी के लिए देना थोडा कठिन होगा.तो चलिए हम इसके जड़ें तलासते हैं.
महान दार्शनिक अरस्तु ने कहा है की “मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज ऐसी संस्था है जो मानवता की धुरी है और जो मनुष्य समाज के बिना रह सकता है वो या तो भगवान् है या  जानवर”.मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है,मनुष्यों का एक तरह के समेकित व्यवहार करने वाला समूह समाज का निर्माण करते है. कई समाजों से मिलकर एक सभ्यता बनती है और सभ्यता के व्यावहारिक अभिव्यक्ति को हम सरल शब्दों में संस्कृति कहते हैं.यानि विचारों का दायरा,इन्ही समाज,सभ्यता और संस्कृति के आयामों पर मजबूती से टिका है .देश,रीती और काल सामाजिक मापदंडो को प्रभावित करते हैं.अब सभ्यता और संस्कृति और इनका समय और रीती से सम्बन्ध वैज्ञानिक शब्दों में समझना थोडा कठिन होगा.अगर थोडा आम भाषा में इन्हें पिरोने की कोशिश करें तो हम पाएंगे की समाजिक मूल्य और संस्कृति का “नैतिक और वैज्ञानिक ज्ञान” दोनों पर जबरदस्त प्रभाव होता है.हर समाज में सामाजिक मान्यताएं या यूं कहें की एक मनुष्य के लिए क्या करना जायज है या नाजायज वो हर देश या समाज  के संस्कितिक विषमताओं के कारण अलग अलग है.अब एक समाज में भी हर मनुष्य की बौधिक क्षमता एक नहीं होती .सरल शदों में बौधिक क्षमता में जो अंतर होता है वो किसी एक चीज़ को देखने के लिए दो मनुष्यों के नज़रिए में अंतर पैदा कर देता है.हर मनुष्य किसी भी घटना को अपने समझ के छनने से छानने का प्रयास करता है.
अब जब सभी कारकों को जोड़ दे तो बात “समझ” पर आ टिकती है.और ये भी साफ़ हो चूका है की ये समझ एक समाज में एक सी तो हो सकती है परन्तु एक नहीं हो सकती.यानि ये हर मनुष्य में अलग होती है जो उसके ज्ञान,समाज,सभ्यता और संस्कृति का प्रतिफल है.जब भी किसी वस्तू या ऑब्जेक्ट को हम देखते हैं या सोचते है तो अपने “समझ” के आधार पर जो मानसिक उद्गार या मनोभाव प्रगट करते है,यही विचार है.विचार की अभिव्यक्ति हमारे सोच को सार्थक आकार देती है और हमारे व्यवहार और आपसी संपर्क को परिभाषित करती है.यानि हम जो समझते है वोही सोचते हैं, लिखते है और बोलते हैं .जैसी समझ वैसे मनोभाव या विचार .
सरल शब्दों में विचार की उत्पत्ति उकेरने का प्रयास किया.अब थोडा विचार आप भी कर लें !