बहुत दिन हुए ,शहर की गलियों में नहीं घूम सका । आज सोचा चलो सर्दी के साथ साथ थोड़ी जोर आजमाइश कर ले। निकला विरानियों की खाक छानने के लिए। गली के कोने में चाय दुकान पर जबरदस्त भीड़ थी। मामला ठण्ड का था,चाय की चुस्कियों के साथ शहर की गोस्सिप वातावरण में गर्मी फैला रही थी। बे-सर पैर के लॉजिक कानों के बगल से गोलियों की तरह गुजर रहे थे । अनायास ही मुझे साहित्यकार वनमाली का दिया दृष्टान्त याद आया जहा उन्होंने रेल के डिब्बे में कई संस्कृतियों और सोच के मिलन को समाज की प्रतिकृति बताया था। एक समय लगा मनो मै वनमाली जी की सोच को दुकान की भीड़ में प्रतिबिंबित होते देख रहा हूँ । उनकी लाज़वाब दार्शनिक सोच ने मेरे चेहरे पर एक मुस्कान बिखेर दी। तन्द्रा भंग कर आस-पास की बतों को समझ के छन्ने से छानने के प्रयास में लग गया। कही राजनीतिक उठापटक,कही फ़िल्मी गप और कही सचिन के महाशतक की संभावनाओ पर कयास-चाय की चुस्कियों के आनंद को दुगना करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे. यही मनोभावों की अभिव्यंजना की मुल्यांकन का अभूतपूर्व अनुभव प्रतीत हो रहा था।
उस भीड़ में एक बुद्धिजीवी सा दिखने वाला अपनी बतों को मनवाने में लगा था। उसके कुछ चमचे उसके दही में सही मिला रहे थे। मेरा ध्यान उस ओर खीच गया , बातें किसी प्रतिष्ठित परीक्षा में पूछे गए प्रश्न को लेकर हो रही थी। महाशय अपने कयासों के बयान चला रहे थे और खोखले अनुभव के आड़ में कड़ाके की सर्दी में रंग जमा रहे थे। मामला उनके पक्ष में जाता दिख रहा था। उस समूह में एक चुप-चाप दिखने वाला नवयुवक अपने अनद्रोइड मोबाइल में छेड़खानी कर रहा था। सहसा वो चिल्लाया- सरजी आपकी लॉजिक बकवास है,गूगल तो कुछ और ही कहता है। इन्टरनेट के युग में महशय की बोतलेबाजी की बत्ती गुल हो गयी। ऐसा लगा, महाशय के सर मुंडाते ही ओले पड़े।इन्टरनेट के पन्नो ने उनकी पोल खोल दी थी,अब चमचे भी मूंह छिपा के हँस रहे थे। कहे तो लोकल भाषा में उनकी पोजीशन की व्हाट लग गयी थी। मै भी मंद-मंद मुस्कुराता हुआ निकल पड़ा । सच ही कहा गया है आधा ज्ञान कोरा है। बिना जानकारी के हांकने से प्रतिष्ठा भी दामन छोड़ देती है।कोरा ज्ञान करे कल्याण!
उस भीड़ में एक बुद्धिजीवी सा दिखने वाला अपनी बतों को मनवाने में लगा था। उसके कुछ चमचे उसके दही में सही मिला रहे थे। मेरा ध्यान उस ओर खीच गया , बातें किसी प्रतिष्ठित परीक्षा में पूछे गए प्रश्न को लेकर हो रही थी। महाशय अपने कयासों के बयान चला रहे थे और खोखले अनुभव के आड़ में कड़ाके की सर्दी में रंग जमा रहे थे। मामला उनके पक्ष में जाता दिख रहा था। उस समूह में एक चुप-चाप दिखने वाला नवयुवक अपने अनद्रोइड मोबाइल में छेड़खानी कर रहा था। सहसा वो चिल्लाया- सरजी आपकी लॉजिक बकवास है,गूगल तो कुछ और ही कहता है। इन्टरनेट के युग में महशय की बोतलेबाजी की बत्ती गुल हो गयी। ऐसा लगा, महाशय के सर मुंडाते ही ओले पड़े।इन्टरनेट के पन्नो ने उनकी पोल खोल दी थी,अब चमचे भी मूंह छिपा के हँस रहे थे। कहे तो लोकल भाषा में उनकी पोजीशन की व्हाट लग गयी थी। मै भी मंद-मंद मुस्कुराता हुआ निकल पड़ा । सच ही कहा गया है आधा ज्ञान कोरा है। बिना जानकारी के हांकने से प्रतिष्ठा भी दामन छोड़ देती है।कोरा ज्ञान करे कल्याण!