Saturday, January 24, 2015

ये कैसी सरस्वती वंदना !



आज बसंत पंचमी का पावन पर्व है ,विद्या की देवी माँ सरस्वती की आराधना का दिन.मेरे लिए आज छुट्टी का दिन है.पर पूजा करनी थी इसलिए सुबह से हीं तैयारी में जुट गया.एक शोधार्थी हूँ,बिना माँ के वरदान के लेखनी को शक्ति कैसे मिल सकती है.फिर भी आम दिनों से लेट ही पूजा कर पाया.पूजा-पाठ से निवृत होकर सोचा थोडा टहल लूं . कॉलेज से भी घूमता आऊंगा और थोडा मन बहलाव भी हो जायेगा.अपने अपार्टमेंट से उतरते ही आभास हुआ आज पुरे शहर में गहमा-गहमी है.चारों तरफ तिलक लगाये लड़के-लड़कियां हाथ में प्रसाद लिए घूमते दिखे.बड़ा अद्भुत दृश्य था,दिल आह्लादित हो गया.बचपन भी याद आ गया.हम भी ऐसे ही घुमा करते थे और मित्र-मंडली के साथ दिन भर इस पूजा-पंडाल से उस पूजा पंडाल,यही काम था.आपस में ये प्रतितोगिता भी रहती थी कि कौन कितना प्रसाद इकठ्ठा कर सकता है.
इन्ही विचारो में डूबा सड़क पार करते ही अचानक कर्कस संगीत कान से टकराई -“तमंचे पे डिस्को”.मेरा ध्यान भंग हुआ,देखा सामने पूजा पंडाल में माता की पूजा हो चुकी थी और प्रसाद वितरण के साथ डांस का अखाडा भी तैयार था .जहाँ युवक-युवतियां तमंचे की धुन पर थिरक रहे थे.मन में एक मधुर मुस्कान दौड़ गयी,पूजा हो रही है विद्यादात्री माँ सरस्वती की और भक्त जन तमंचे की धून पर थिरक रहे हैं.अब विद्या की जगह में तमंचे का क्या काम.बजना चाहिए भजन और बज रहा है लाउड संगीत.ये उसी तरह लग रहा था जैसे बेगानी शादी में अब्दुल्लाह दीवाना.और तो और सभी को अपने फैशन स्टेटमेंट को परिभाषित करने का मौका भी आज ही मिला मालूम पड़ रहा था.स्कूल और कालेजों में तो फिर भी अनुशाषण दीखता है,पर जब तक शिक्षक उपस्थित हों.उनके निकलते ही पुजामय माहौल तेज बीट के संगीत के साथ मस्तिमय हो जाता है.मैंने तो देखा की लड़कों ने विशेष तौर पर डांस नंबर का जुगाड़ अपने पेन ड्राइव में कर रखा था .पहले से ही पूरी तरह योजना बन चुकी थी की कौन से गानों पर मटकना है.जिन गलियों से गुजरा कमोबेश यही नजारा था.कहीं अभी तो पार्टी शुरू हुई है .....कहीं आंटी पुलिस बुला लेगी.और तो और कुछ नुक्कड़ो पर तो छिछोरो ने पूरा रूमानी (रोमांटिक) गानों का जुगाड़ कर रखा था,पता नहीं किन्हें प्रभावित(इम्प्रेस) करना था वो ही जाने.इतना तो तय था,की माता सरस्वती को इम्प्रेस करने का उनका इरादा कतई नहीं था.नुक्कड़ो में तो स्थिति और हास्यास्पद थी.पूजा करने वालें यों कहे पूजा कमिटी के सदस्यों का दूर-दूर तक पढाई से वास्ता नहीं था.ये पूजा नहीं हुयी,वरन मनोरंजन और उल्लास का साधन हुआ.माता रानी भी अपने बेटों की इस नैतिक पतन को देख कर द्रवित ही होती होगी.वो तो माँ हैं,क्षमा-शील हैं वो हम बच्चो को तो माफ़ कर ही देगी.पर ये क्या है,इसका उत्तर शायद मेरे पास भी नहीं.माता सरस्वती हमें वरदान में विद्या के साथ,शील और शिष्टाचार दोनों देती है,पर इन्हें ग्रहण करने में ही हम पीछे रह जा रहे हैं.
गंभीरता से देखा जाये,तो इसमें पूरा दोष इन नौजवानों का नहीं,दोषी समाज भी है.हमने खुलेपन और विकासवादी सोच के साथ संस्कारों की भी तिलांजलि देनी शुरू कर दी है.पशात्य संस्कृति का प्रदुषण हमारी भारतीयता पर भारी पड़ रही है.पूजा-पाठ जैसे पवित्र अनुष्ठानो को भी हम मनोरंजन का पर्याय मानते जा रहे है.ऐसा नहीं है की मैं मनोरंजन,नाच गाने को बुरा मानता हूँ.पर ऐसे पवित्र आयोजनों पर इनकी प्रासंगिकता बनती है क्या? यह एक यक्ष प्रश्न है.संस्कृति और मनोरंजन के बीच की खिची मोटी लकीर पतली होती जा रही है.अब तो यही लगता है एक दिन दम भर मौज,डांस-मस्ती करनी है और दुसरे दिन विसर्जन में भी डिस्को गानों के बीच माता की प्रतिमा विसर्जित कर आना है.बस हो गयी पूजा.पंडित जी का पूजा एवं आरती करा लेने से हीं सारे दायित्वों की पूर्ति हो जाती है.
अब जरा आप बताएं ये कैसी सरस्वती वंदना है!

Saturday, January 10, 2015

पप्पू भाईजान हमारी शान

झांसे में किसी के, वो आता नहीं था
वो पप्पू ही था, जो नहाता नहीं था

पापा भी समझाते, समझाते हारे
दोस्तों ने ताने भी, जी भर के मारे

हमेशा बच निकलता, वो टकराता नहीं था
वो पप्पू ही था, जो नहाता नहीं था

एक दिन गब्बर भी बोल, करके ठिठोली -
बता कब है होली, बता कब है होली

होली के दिन हुआ, जब बिलकुल सवेरा
सुबह ही सुबह , सबने पप्पू को घेरा

बड़े दिन हुए , तुमको बचते बचाते
कहो क्या है कारण, नहीं क्यों नहाते

पानी की टंकी में, कई रंगों को मिलाएं
आओ चल के पप्पू को , इसमें डुबायें

बिगड़ गया पप्पू , दोनों हाथों को जोड़ा
कैसे लोग हो तुम , शर्म करो थोडा

पानी की किल्लत है , रास्ट्र सुखा पड़ा है
तुम्हे चाव होली का, फिर भी पड़ा है

हजारों गाँव में , भयंकर है सुखा
हमारा अन्नदाता , किसान खुद ही है भूखा

हमेशा ही करते हो, क्रिकेट की बातें
क्रिकेट के स्कोरों को , ओढें या चाटें

आओ चर्चा करें, कैसे पानी बचाएं -
समझें पानी की कीमत, और सबकों बताएं

बात सुन पप्पू की, अपनी हिम्मत थी टूटी
पर ट्रिक एक लगाई , हमने बिलकुल अनूठी

बोले पानी को छोड़ो , हम से रंग तो लगवाओ
बहुत दिनों से बचे, होली पर तो नहाओ

बात रंगों की सुन, पप्पू था जोश में
जो सोचा कभी , कह गया होश में

बस एक रंग ही , मुझको प्यारा लगे
सारे रंगों से मुझको , वो न्यारा लगे

ये रंग है निराला, जो दिखता नहीं
किसी बाजार में भी, ये बिकता नहीं

अगर है वो ही रंग तो लगा दो मुझे
रंग "बसंती" से चाहे , नहा दो मुझे

रंग बसंती लगा, जब भगत सिंह चला
देश के दुश्मनों, का था सुखा गला

रंग बसंती, शिवाजी की पहचान है
ये उसी को चढ़ा, जिसमें स्वाभिमान है

सुन के बातें बड़ी, दोस्त हैरान थें
पप्पू फिर बच गया , वो परेशान थे

क्योंकि गीत देश प्रेम का , उनको आता नहीं था
वो पप्पू ही था, जो नहाता नहीं था
झांसे में किसी के, वो आता नहीं था