Saturday, April 29, 2023

हमारा अस्तित्व

 

जिस दिन से हम जन्म लेते हैं एक प्रश्न साथ लिए आते हैं,हमारा अस्तित्व क्या है.पार्थिव अस्तित्व तो परिवार और कूल का मिल जाता है पर पर आत्मिक अस्तित्व की खोज में शायद पूरी उम्र गुजार देते हैं.जीवन माया मोह का ताना बाना है,उसी में हम उलझे रहते हैं.सांसारिक मापदंडो पर जो कारक दीखते हैं हम उसी में अपना अस्तित्व तलाशते रहते हैं.अच्छी शिक्षा,इज्जतदार नौकरी या पद हो या समाज में अच्छी प्रतिष्ठा हमने यही पैमाना तय कर लिया है अपने अस्तित्व को परिभाषित करने के लिए.अगर ये न मिला तो मानवीय संवेगों के ज्वार भाटा में घिरे रहो.इसी मनोदशा को विज्ञान ने “डिप्रेशन” कह दिया. अब ये मानवीय संवेगों की उथल पथल बहुत ही गंभीर रूप लेती जा रही है.हम भौतिकवादी होते जा रहें हैं और इसमें उलझ कर हम खुद को हानि पहुंचाते जा रहे हैं.

रामचरित मानस में यह उल्लेख आया है,”बड़े भाग मानुष तन पावा”.जन्म जन्मो का पुण्य हमें मनुष्य शरीर में जन्म दिलवाता है.प्रश्न यह है की भौतिक अस्तित्व और सामाजिक अवधारणाओ में खुद को तलाशते अपना जीवन व्यतीत कर अपने जीवन को सफल मान लें या इससे आगे कुछ और भी है!

समाज में खुद को स्थापित करना अपने भौतिक जीवन के कर्तव्य निभाना ये तो आवश्यक है ही पर आत्मिक उन्नति या संस्कार का उत्थान कैसे हो इस और भी हमे सोचना होगा . जन्म की सार्थकता कैसी हो ये हमे तय करना होगा .अपने संस्कारों की उन्नति कैसे हो,वैसा हमे निरंतर प्रयास करना होगा.पोजिटिव सोच विकसित करनी होगी.यही हमे अपने अस्तित्व को तराशने में हमारी मदद करेगा.

संस्कारों की उन्नति तभी संभव है जब हम खुद को भारत के अध्यात्मिक संस्कृति से जोड़ें .श्रीमद भगवद गीता में तो जीवन मूल्यों को भगवान श्रीकृष्ण ने बहूत ही सरलता से रख दिया है.गोस्वामी तुलसीदास ने रामायण में प्रभु श्री राम की मर्यादा पुरुषोत्तम छवि को सृजित किया तो उनके चरित्र वर्णन में उच्चतम जीवन मूल्यों को पिरो दिया .आज हमारे पास हमारे शास्त्रों में सैकड़ों दृष्टान्त हैं जो हमारे जीवन के उलझनों का उत्तर देने में पर्याप्त है और हमारा मार्गदर्शन कर हमें विपरीत परिस्थतियों से उबारने में सक्षम है.

जरूरत है इन शास्त्रों को पढने की,उनके शिक्षा को आत्मसात करने की.हम आज मशीनी युग में अध्यात्म से दूर होते जा रहे हैं.यही हमारे मनोवैज्ञानिक पतन का एक मजबूत कारण हैं.अगर हमें अपने आत्मिक और भौतिक अस्तित्व को पूर्णता से पाना है तो हमें अपने भारतीय संस्कारों और अध्यात्म की और झुकना पड़ेगा .अपने हृदय को इनकी शिक्षा को अपनाने के लिए खोलना पड़ेगा.धीरे धीरे हम पायेंगे हमारे संस्कार उचें हो रहे हैं हमारा व्यवहार बदल रहा है.यह बदलाव की पहली सीढ़ी है.जैसे जैसे विश्वास बढ़ता जाएगा परमपिता परमेश्वर से प्रेम बढ़ता जाएगा.इस प्रेम बंधन में न तो मानवीय संवेगों का ज्वार भाटा रहेगा न ही नकारत्मक मनोदशा.हर तरफ आनंद ही आनंद होगा.यही से अपने अत्त्मिक अस्तित्व को पहचानने का सफर आरम्भ होगा.

1 comment:

  1. Sir you have very nicely pointed out the essentials of being born as a human. Thank you so much for putting it out for all of us.

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